मणिकर्णिका के बारे में एक बार न चाहते हुए भी लिखना। एक बार फिर से यह बहस पुरजोर है कि भारत एक राष्ट्र नहीं था, एक देश नहीं था और वह बस जागीरों का समूह था। यह झूठ इतिहास में कक्षा 6 से पढा दिया जाता है और बस वही झूठ आगे जाकर हमेंं हमारे ही देश के प्रति एक उपेक्षा की दृष्टि से देखने के लिए बार बार प्रेरित करता है। हम जब भी भारत के बारे मेंं बात करते हैं तो हमें हमेशा ही यह याद रखना चाहिए कि भारत हमेशा से ही एक राष्ट्र था। दरअसल हम देश, राष्ट्र आैर राज्य अर्थात कंट्री, नेशन और स्टेट की परिभाषा को न समझते हुए भ्रमित होते हैं और इस झूठ के बहकावे में आ जाते हैं।
जब हम यह कहते हैं कि भारत एक देश नहींं था तो यह बहुत हद तक सही है, पर भारत एक राष्ट्र नहीं था, यह सही नहीं है। देश और राष्ट्र दोनों में बहुत अंतर है और दोनों ही अपने अपने संदर्भ में भिन्न हैं।
देश उस भूभाग को कहा जाता है जहां पर एक संघीय ढांचा हो, जहां एक एक निर्वाचित सरकार हो, और जहां एक नियत भूभाग हो, जो कि भारत अभी है। कश्मीर से कन्या कुमारी तक। पर क्या भारत इतना ही है, क्या भारत की पहचान इतनी ही है।
नहीं। क्योंकि भारत जब राष्ट्र के रूप में पूरे विश्व में विख्यात था तब भारत की पहचान ज्ञान की भूमि के रूप में थी। देश जहां भौगोलिक सीमा को बताता है वहीं राष्ट्र इससे कहीं विराट रूप में उपस्थित होता है।
राष्ट्र विचार है, राष्ट्र पहचान का विचार है। राष्ट्र का अर्थ है ऐसे लोगो का समूूह जो एक ही भाषा बोलते हैं, एक सी ही संस्कृति है। अर्थात
Johann Kaspar Bluntschli says, “Nation is a union of masses of men….bound together, especially by language and customs in a common civilization which gives them a sense of unity and distinction from all foreigners”
जब हम 1857 के संदर्भ में या अंग्रेजों के खिलाफ ल्रड़े जा रहे युद्धों को यह कहकर खारिज करते हैं कि वह अपनी अपनी रियासतों को बचाने के लिए लड़ रहे थे, तो कहीं न कहीं यह नहीं याद रखते कि वह उस पूरे भूभाग को बचाने के लिए जंग लड़ रहे थे जो उनकी पहचान से जुड़ा था। बाबर जरूर बाहर से आया था पर बहादुरशाह जफर जो दिल्ली की सल्तनत के आखिरी सुल्तान थे वह यहीं के थे, वह देश भारत के नहीं थे वह राष्ट्र भारत के थे। रियासतें अलग थीं पर संस्कृति एक थी। अंग्रेेज एक स्टेट के लिए लड़ रहे थे जबकि वह अपनी संस्कृति के लिए लड़ रहे थे।
यह बात कि मुगलों ने भारत को एक भौगोलिक पहचान दी भी अपने आप में उतना ही भ्रामक है जितना यह कहना कि अंग्रेजों ने भारत को पहचान दी।
विषय बहुत जटिल है, और उस पर कहा जाना उससे भी जटिल। बस यही कहना है कि जब से हमने पश्चिम की अवधारणाओं के आधार पर आंकना आरंभ कर दिया तब से हमने अपने आपको सीमित तथा संकुचित कर दिया। जिस प्रकार रिलिजन कभी धर्म का पर्याय नहीं हो सकता है, उसी प्रकार राष्ट्र का पर्याय देश कभी नहीं हो सकता है।
यह अंग्रेज थे जिन्होनें अफगानिस्तान, पाकिस्तान का निर्माण किया। क्या किसी को अफगानिस्तान, पाकिस्तान या बांग्लादेश का पुराना नाम पता है, नही न। वह भारत ही था। वह राष्ट्र भारत था, देश भारत नहीं।
तो मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी का दूसरा अर्थ यह भी है कि मैं अपना भारत किसी को नहीं दूंगी।
देश का और राज्यों का निर्माण्ा किया जा सकता है, उन्हें मिटाया जा सकता है पर याद रखें कि राष्ट्र का न तो निर्माण हो सकता है और न मिटाया जा सकता है। 1857 में हिंदू और मुस्लिम मिलकर अपने एक साझे राष्ट्र के लिए लड़े थे पर उन्हें 1947 में दो देश मिले।
– सोनाली मिश्र